Sunday, May 25, 2014

रिक्त स्थान

तुम जिसे अपने सूने जीवन के रिक्त स्थान की पूर्ति समझ रहे हो...
वो पूरा कथासार हैं मेरी अपनी जिंदगी का...
और सुनो...उसमें कोई रिक्त स्थान नहीं हैं..
इसलिए तुम किसी और शब्दकोश को तलाश कर लो...
अपने उस रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए...
(अर्चना

Tuesday, May 6, 2014

हाँ बहती हवा सी हूँ मैं...

बहती हवा सी हूँ मैं मुझे थोड़ा और बह जाने दे
मुझमें कुछ मौसम और बदल जाने दे कि....
 
आज फिर जा रही हूँ सरहदो के पार बहुत दूर...
किसी सकून से लबरेज सरज़मीं पर...
जहाँ सितारे सजदा करते हैं तन्हा...
जहाँ रोशन होने को हैं उम्मीदों का चाँद...
वहाँ आज खुद से निजात पा लेने दे...

हाँ बहती हवा सी हूँ मैं, मुझे थोड़ा और बह जाने दे
मुझमें कुछ मौसम और बदल जाने दे कि....

आज फिर जा रही हूँ, जहाँ मेरे ख्वाबों की वादियाँ...
और राह तक रहे हैं कुछ अंजाने एहसास...
जहाँ रिश्तों की सुलगती आंच नहीं...
बस कुछ गुनगुनाती यादें है जहाँ...
वहाँ आज मुझे गुम हो जाने दे...

हाँ बहती हवा सी हूँ मैं, मुझे थोड़ा और बह जाने दे...
मुझमें कुछ मौसम और बदल जाने दे...
(अर्चना )

संबंध



आज पहले जैसे संबंध
नहीं रहे
पहले संबंध जैसे
मिट्टी के कुल्हड़ में रबड़ी...
जिनमें केसर सी खूशबू...
और ख़ालिस दूध सी शुद्धता...
लेकिन आज मिलावटी जिंदगी के
मिलावटी दूध में बनी...
ये बासी रबड़ी से संबंध...
जिसमें शुगर फ्री मिठास तो है
पर वो बात नहीं
जो पहले थी...
और हाँ अब कुल्हड़ भी नहीं रहे
हैं तो बस थर्मोकल की प्लेट...
और उसी की तरह हम भी बनावटी हो चले हैं
जो किसी का फोन उठाने से पहले...
सोचते हैं
कि
आज कौन-सा बहाना बनाना है (अर्चना)