कहाँ चल रहे हो तुम कंटीले शूल पर...
आ जाओ मेरी पनाहों में...
हाँ आ भी जाओ...
क्यूंकि मैंने तुम्हारी राहों में...
अपनी पलकों को बिछा दिया है ...
देखो अब राहों की उष्णता भी कम होने लगी है...
और हवाओं में भी कुछ नमी सी लगती है...
वो देखो उस मुक्त गगन ने भी ओढ़ लिया है श्याम आँचल...
क्यूंकि मैंने अपने नैनों में तुम्हारे लिए सावन सजा लिया है...
हाँ देखो ना वो अमावस की दुल्हन भी अब लरजने लगी उजालों से...
उसने तारों से अपना आँचल को सजा लिया है...
और भर दिया है असंख्य तारों से उन राहों को...
क्यूंकि मैंने अपने नैनों के दीपों को तुम्हारे लिए रोशन कर दिया है...
हाँ वो देखो सारा गुलशन भी अब महकने सा लगा है...
रात भी सज कर इतरा सी रही है...
हाँ वो चंदा भी शरमा कर बदलियों की ओंट में छिपने लगा है...
क्यूंकि तुम्हारे प्यार का काजल मैंने अपने नैनों में सजा लिया है...
हाँ आ भी जाओ मेरी पनाहों में...
क्यूंकि तुम्हारे लिए शूल नहीं मेरा प्यार है जीवन की वो ठंडी छाँव...
जिसके साये में तुम्हारी राह आसान हो जाएगी....
और मैं तुम्हे उस पर चलते देख कर थोडा और जी लूंगी...
अर्चना
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
ReplyDeleteARCHNA JI KYA KHOOB LIKHA DIL KO CHOO GAI RACHNA...
ReplyDeleteHamesha achha likhti hain aap..!
ReplyDeletebahut achhe shabdo ko jodkar ek khoobsurat rachna banayi hai...
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ReplyDeletemere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
अर्चना जी . प्रशंसनीय रचना ।
ReplyDeletebahut hi achhi rachna....
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