Friday, January 14, 2011

कशमकश

इन दिनों एक कशमकश में उलझी है जिंदगी...
जहाँ पर मैं खड़ी हूँ...
क्या वो सही मकाम है...
क्या एक क़दम आगे बढ़ाऊँ...
या दो क़दम पीछे हट जाऊ...
समझ नहीं पाती हूँ...
जब भी सोचती हूँ...
क्या अब तक जो किया...
वो सही किया...
या जो आगे करना चाहती हूँ...
वो सही होगा...
या सब कुछ यही छोड़कर...
बहने दूं जिंदगी की धारा को...
फिर देखूं तो सही...
कहाँ ले जाती है ये मुझे...
या फिर रुख मोड़ दूँ उस धारा का...
जो मुझे मुझ तक पहुँचने नहीं दे रही लेकिन...
दावा करती है की एक दिन मकाम पर ज़रूर ले जाएगी....
हालाँकि आज कहने को....
मकान, दीवारें, छत और दरवाजे...
कुछ भी नहीं है मेरे पास....
है तो बस तकदीर की कुछ बाकि बची उम्मीदें...
कुछ नन्हे से हौसले...
हाँ कुछ यारों के धोखे भी है ...
और कुछ दर्द सहे-अनसहे से...
कुछ संबंधों की दरारें भी है...
जिन्हें भरने की कोशिश में...
जहाँ भी पहुँचती हूँ...
वहाँ मेरे अलावा बहुत कुछ होता है लेकिन...
मुझे मुझ तक पहुँचने के लिए...
शायद कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा...
समझ नहीं आ रहा
एक क़दम आगे बढ़ाऊँ...
या दो क़दम पीछे हट जाऊ...
अर्चना...

5 comments:

  1. न, न अर्चना जी, क़दम पीछे हटाने के बारे में कभी न सोचियेगा.
    बुरा समय तो केवल परीक्षा की घडी होती है.

    ReplyDelete
  2. अर्चना जी ! शायद हर आदमी की ज़िंदगी में कभी न कभी ऐसा वक़्त आता है जब उसे आर-पार का निर्णय लेना पड़ता है .....यह नाज़ुक मोड़ होता है दिशा अच्छी हुई तो बल्ले-बल्ले ....वरना जिन्दगी भर धक्के-धक्के .अंतरात्मा की पुकार सुनने-समझने की कोशिश करेंगी तो सही निर्णय हो जायेगा .......आपने अपने कुछ उसूल बना रखे हैं ज़िंदगी के .......उसूल यदि सही हैं तो समझौतों की कोई आवश्यकता नहीं ...संघर्ष तो उन उसूलों की परीक्षा के लिए हैं कि आप कितनी दृढ हैं उनकी रक्षा के लिए ...एक बात का ध्यान रखियेगा ....दूसरों की सलाह पर नहीं अपनी अंतरात्मा पर ज्य़ादा भरोसा करिएगा ....देखना सोना और निखर उठेगा.

    ReplyDelete
  3. सुन्दर भाव पूर्ण रचना.

    ReplyDelete
  4. जीवन की कशमकश का सुंदर चित्रण - ऐसा अक्सर होता है जब दोराहे पर खड़े होते हैं?

    ReplyDelete