Tuesday, July 27, 2010

हाँ मैं जी लूंगी

उम्र के इस मुकाम पर अलविदा का अहसास भी कितना दर्द देता है लेकिन...
तुमने तो कल शब् मुझे वो दर्द दे ही दिया...
कोई बात नहीं दर्द तो दर्द ही सही कुछ तो दिया है तुमने...
कुछ तो ऐसा है मेरे पास ऐसा जिसके सहारे...
मैं अपनी यादों की किश्तों से अपनी जिंदगी का क़र्ज़ उतार लूंगी...
हाँ मैं जी लूंगी...

सुनो तुम मेरी फिक्र ना करना क्योंकि फिक्र इंसान की दुश्मन है....
और मैं नहीं चाहती की मेरी कोई चीज़ तुम्हारी दुश्मन बने...
क्यूंकि मैं तो एकतरफा प्यार और दोस्ती की वो जिंदा मिसाल हूँ...
जिसे तुम याद करना ना चाहो बेशक...
लेकिन अपने ज़ेहन के पिंजरे में एक परिंदे की तरह मुझे कैद ज़रूर रखोगे...
और हाँ मैं उसी कैद का अहसास कर के तुम्हे याद कर लूंगी...
हाँ मैं जी लूंगी...

हाँ मैं जी लूंगी

अर्चना

6 comments:

  1. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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  2. कुछ तो ऐसा है मेरे पास ऐसा जिसके सहारे...
    मैं अपनी यादों की किश्तों से अपनी जिंदगी का क़र्ज़ उतार लूंगी...
    हाँ मैं जी लूंगी...वाह......... क्या बात कही है आपने

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  3. kitna gahra arth hai...
    haan main ji loongi....
    waah....
    badhai...

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  4. बहुत सुन्दर अंदाज
    ************************
    हथेली पर अपने ताज़ रखिये
    कुछ तो नया अन्दाज़ रखिये
    .
    आप तो आप हैं, नाम बेशक
    सचिन, अमिताब या सलमान रखिये

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