Saturday, August 28, 2010

मेरी आशाएं...

सोच रही हूँ शाम ढलने से पहले बुहार दूँ...
अपने आँगन से कुछ निराशाएं क्यूंकि...
ख्वाब में ही सही कुछ आशाओं ने...
अपने आने की बात कही है...
हाँ उनके साथ कुछ पुरानी यादों को भी...
मैं बाहर का रास्ता दिखा दूँ क्यूंकि...
कब तक उन्हें मेहमान बना कर रखूंगी जबकि...
अब अतिथि देवो भव का ज़माना कबसे गुज़र गया है...
हाँ अब इस सच को स्वीकार करना ही होगा...
कि इस दुनिया में अहसास और जज़्बात की...
कोई कीमत नहीं है फिर भी...
इस दुनिया के बाज़ार में कुछ लोग बिना मोल बिकते है...
और हमे उनकी भीड़ में अपने आपको ढूँढना है...
और उन्ही कुछ आशाओं के साथ...
जो कभी भी ख़्वाबों में आ सकती हैक्यूंकि...
ख्वाब मेरे अपने है...
हाँ वही तो मेरे अपने है...
और हाँ आशायीं भी मेरी अपनी है...
और अब बस निराशाओं को पराया बनाना है...
सो सोच रही हूँ आज शाम ढलने तक ये काम कर ही दूँ...
क्यूँ कर दूँ ना...?
अर्चना

8 comments:

  1. Kaash ham is tarah nirashaon ke apne aangan se buhar de sakte! Kitna anootha khayal hai ye!

    ReplyDelete
  2. ji bilkul....
    yeh kaam agar aap kar sakein to kya baat ho....
    bahut khub/.....

    ReplyDelete
  3. ----------------------------------
    मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
    जरूर आएँ..

    ReplyDelete
  4. आशा भरी रचना ।
    अर्चना जी ! नयी पोस्ट डालिए ।

    ReplyDelete
  5. इस दुनिया के बाज़ार में कुछ लोग बिना मोल बिकते है
    प्रेम की अच्छी अभिव्यक्ति है

    ReplyDelete
  6. ...
    अर्चना, सोच रहा था, चेहरा-किताब पर आपसे मित्रता की जाये या नहीं! सुन्दर चेहरों से थोडा डर ही लगता है.. लेकिन, आपकी रचना ने हल दे दिया.. भाव के स्तर पर अच्छी गठन! शब्द विन्यास में थोड़ी सी ढीली! लेकिन कुल मिलाकर बहुत अच्छी ! मुम्बईया मिजाज के माफिक!खैर ! आपके ब्लॉग का रंग बहुत गाढा है थोडा सा हल्का करेंगी तो रचना पढ़ने में कुछ आसानी होगी .. thanks

    ReplyDelete
  7. छोटा सा सुझाव दे रहा हूँ !आपकी रचना की पहली कुछ पंक्तियों को !
    सोचती हूँ
    शाम ढलने से पहले
    बुहार दूँ...
    आँगन से कुछ निराशाएं
    ख्वाब में
    कुछ आशाओं ने
    आने की बात की है...धन्यवाद !

    कविता में यह "हाँ, मैं , क्योंकि , जबकि , भी.. वगैरा" जैसे शब्द जो आपके कहे की व्याख्या करने लगें उनसे परहेज़ उचित होता है ...

    ReplyDelete