Friday, April 23, 2010

ये मेरा अपना मन मेरा दुश्मन है...
हाँ सच इसकी अपनी सोच से ही अनबन है....
आवाजों से इसे परहेज़ हैं यारों...
सन्नाटा इसके लिए जैसे मधुबन है...
हाँ दुख को इसने ओढ़ रखा है यारों...
और खुशियाँ इसकी उतरन है...
हाँ जिसके खातिर मैं अपनों से लड़ी...
हाँ वही तो अब इसका हमदम है...
हाँ मेरा अपना मन ही मेरा दुश्मन हैं...
हाँ सच इसकी अपनी सोच से ही अनबन हैं...
अर्चना...

1 comment:

  1. bilkul sach kaha aapne yeh mann hi hai jo hamse sab kuch karwata hai...
    bilkul sachhai ke karib....
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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