तुम कब आओगी...?
तुम्हारा ये सवाल कितना बेमानी हैं आज...
जब मेरे दिन का सूरज बुझ चुका...
जब मेरा वजूद धूल बन...
गलियों-गलियों भटक रहा...
और दिल पगडण्डी पर
ख़ामोशी से...
सन्नाटे को आगोश
में भींचे...
सहमा सा चल रहा...
और जब बहते हुये पानी
में...
बह के भी मन मेरा प्यासा
रहा...
तब तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि...
तुम्हारी
अभिलाषाएँ मैं पूरी करूंगी...
वैसे सुनो मैंने तो इंतजार को...
कब का पूर्ण विराम लगा...
अपना लिया चिर विश्राम को...
अब मेरी बूढी हड्डियों को अग्नि देने...
कहो तुम कब आओगे...? (अर्चना )
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