Tuesday, April 20, 2010

प्यार की शाश्वत दुनिया...

चलो फिर एक बार फिर से चलते हैं उस दुनिया में...
जहाँ हम दोनों भूल जाये एक दूसरे के फेंके हुए दर्द...
और चुभते हुए अहसासों को...
क्योंकि जीवन जीने का नाम है...
गुज़ारने का नहीं...
और वैसे भी हमने बहुत गुज़ार लिया इसे...
यूँ ही एक साथ रहते हुए...
पर एक दूसरे के बिना...
लेकिन अब आओ इसे फिर से जिएँ...
उस सपने को जीवन्त करने के लिए...
जहाँ तुम्हारी खुशबू से भीगे ख़त थे...
और जिन्हें पढ़ते-पढ़ते भीग जाते थे मेरे नैना...
और हाँ जहाँ हमारे तन और मन कभी मिलते न थे...
पर हम जीते थे, एक दूसरे के लिए...
क्यूंकि तब एक जज़्बा था प्यार का...
प्यार के अहसास का...
और जहाँ सिर्फ़ प्यार ही रह जाता था...
और घुल जाते थे सारे वो अहम, अभिमान हमारे ...
जो आज हमारे बीच दीवार बन गए हैं...
इसलिए आओ चलें फिर एक बार फिर....
उस प्यार की दुनिया में...
क्यूंकि सुना है की प्यार कभी मरता नहीं...
मरते तो जिस्म है...
और ज़िंदा रहते हैं यही प्यार के प्यारे अहसास....
हाँ प्रिये प्यार और प्यार के इसी अहसास का नाम ही तो जीवन है...
और ये जीवन तब भी चलता है जब हम नहीं होते...
तो आओ ना फिर एक बार चलें...
उस शाश्वत जीवन की ओर...
अर्चना...

1 comment:

  1. लेकिन अब आओ इसे फिर से जिएँ...
    उस सपने को जीवन्त करने के लिए...
    जहाँ तुम्हारी खुशबू से भीगे ख़त थे...
    और जिन्हें पढ़ते-पढ़ते भीग जाते थे मेरे नैना...
    waah kya baat hai..
    mann khush ho gaya...
    sach mein bahut hi behtareen rachna...
    yun hi likhte rahein..
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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