Tuesday, September 17, 2013

"काश वो एक बुरी लडकी होती..."

वो एक अच्छी लडकी...
ताउम्र अच्छी ही बनी रही...
संस्कारी...
सुशील...
सर्वगुण संपन्न...
शर्म-ओ-हया की एक जीती जागती मिसाल...
गजब का हौसला...
लेकिन सच कहें तो ये सब उसके लिये आसान ना था...
हर दिन उसे अपनी इच्छाओं से जंग लडनी पडती थी...
और फिर एक दिन...
वो अपने माँ-बाप और खानदान की इज्ज़त का भार लिये...
मन में अनगिनत सपनों का संसार लिये...
सोचती ही रह गई अपने भावी जीवन के बारे में...
और देखते ही देखते जीवन बीत गया...
नून- तेल-लकडी के हिसाब में...
रिश्तों की चौखट पर सजदे करते हुये...
और फिर जब एक दिन अचानक उसकी नज़र पडी आईने पर...
तो पाया कि जिन बालो को वो अपनी पसन्द से गुथना चाहती थी...
वो अब जूट की रस्सी से उलझे हैं...
बिलकुल उसकी ज़िन्दगी की तरह...
एक फीकी सी मुस्कान उसके चेहरे पर आई...
और अनायास मुहँ से निकल पडा...
"काश वो एक बुरी लडकी होती..."

(अर्चना...)

No comments:

Post a Comment