Wednesday, January 20, 2010
ठहर ऍह जिंदगी...अभी कई दर्द हैं बाकि...बाकि हैं कई धोखे...और कई ज़ख्म हैं बाकि....वैसे एक बात पूंछू तुझसे...ये तेरा कैसा फलसफा हैं...की कई ठोकरे खा कर भी...तू बदस्तूर चलती हैं...ना रूकती हैं...ना झुकती हैं...ना थमती हैं...ना थकती हैं...ना तेरी ये रफ़्तार कम ही होती हैं...बता ना ये कैसा जुनू हैं तेरा...ये कैसी वहशत हैं...तेरे हर कदम पर वहशत हैं...तेरी हस्ती में दहशत हैं...फिर भी तू बिना रुके...क्यूँ चली जा रही हैं...क्या अब भी कोई सफ़र हैं बाकि...आरी ओ बावरी....ज़रा तो ठहर...पीछे मुड कर तो देख...बीते दिनों में क्या खोया हैं तुने...और क्या पाया हैं...वो देख कुछ सुख के लम्हे...कुछ रिश्ते बिखरे से...कुछ अरमा टूटे से...कुछ यादें सहमी सी...कुछ आंसू गिले से...कुछ सूखी सी हंसी...कुछ यारों के धोखे...कुछ रूखे से किस्से...एक बाबुल अंगना...वो अम्मा की बातें...एक प्यारा सा बचपन...एक सहमा सा तन-मन... ये सब तुझे बुलाते हैं...तू पहले इन्हें संजो तो ले...फिर चाहे तो आगे बढ़ जाना...क्यूंकि जान गई मैं की... अभी तेरा एक सफ़र बाकि हैं...जहाँ और दर्द हैं...और ज़ख्म हैं...और इम्तेहा बाकि हैं...तेरी बिखरी सी...टूटी सी सही...कुछ और सांसे बाकि हैं...अर्चना
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likhne kee aapkee apnee shailee hai....shabd-chitra banaane men kushal hain aap.leek se hatkar aapkee shilee bahut achhee lagee. likhatee rahen.
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