Monday, January 25, 2010

जिंदगी के सारे रंग गुम गए हैं शायद...तभी तो तेरी तस्वीर धुंधली हो गई हैं...बीते कल की जड़ें कमज़ोर हो गई है शायद...तभी तो यादों की टहनी शाख से टूट गई हैं....धागे तेरी प्रीत के टूट गए हैं शायद...तभी तो प्यार की माला बिखर सी गई हैं...राहों में तेरी यादों के दीये बुझ गए हैं शायद...तभी तो जिंदगी मेरी भटक सी गई हैं...मेरी पलकों की क़ैद में आंसू कसमसा गए हैं शायद...तभी तो आँखों में एक चुभन सी भर गई हैं...मौसम की तरह तू बदल गया हैं शायद...तभी तो बहार आ कर भी नहीं हैं...मेरे अहसास अब मर गए हैं शायद...तभी तो क़यामत का अब मुझे डर नहीं हैं... अब चाहे रहगुज़र में तुम मिलो ना मिलो...मिल गई तुम्हारी बेवफाई अब हमे कोई डर नहीं हैं....अर्चना...

2 comments:

  1. ophhh! aap rulaa kar hee maanengee kyaa ? very snstv poem and hnst too.aapke ahsaason ko jee paanaa badaa hee mushkil hai.hakeequt ko sweekaar lenaa bade dil kaa kaam hai.

    ReplyDelete