Monday, September 19, 2011
ना जाने क्यों...?
कुछ बूंदें आंसू के टपका कर रोती रही.. .
फिर जैसे हल्की हो गई...
ऐसे कि जैसे...
कुछ हुआ ही ना हो...
और ऐसा इसलिए हुआ
क्यूंकि जिंदगी ने रोने की इजाज़त नहीं दी हैं मुझे...
इजाज़त हैं तो सिर्फ दूसरो के आंसू पोछने की...
उनका साथ देने की...
और इसीलिए उनका साथ देती रहती हूँ...
शायद जिंदगी ने किसी के साथ की इजाज़त नहीं दी हैं मुझे...
इंसान हूँ...
गलती हो ही जाती हैं...
भावनाओं के तूफ़ान में बह कर...
किसी को अपना समझ लेती हूँ ...
लेकिन अगले ही पल...
उस तूफ़ान में एक ज्वर उठ कर...
मुझे जता ही देता हैं...
जिंदगी ने किसी को अपना की इजाज़त नहीं दी हैं मुझे...
जानती हूँ मेरी जिंदगी मुझे क्यूँ दायरों में बांधती हैं...
क्यूंकि जानती हैं वो...
मैं जिस मिट्टी की बनी हूँ...
उसके सांचे में कोई ढल नहीं सकता...
लेकिन फिर भी...
बार-बार उम्मीद का दामन थामे...
उनसे उम्मीद करती हूँ...
जिन्होंने मुझे नाउम्मीद कर दिया...
लेकिन फिर भी हैरान हूँ मैं क्योंकि...
पहली बार ही सही...
जिंदगी ने नाउम्मीदी की इजाज़त नहीं दी हैं मुझे...
ना जाने क्यों...?
अर्चना...
Sunday, September 4, 2011
तुम्हारी याद...
तुम्हारी एक बात याद आ गई...
और बस फिर क्या था...
शब् ऐसे कटी...
जैसे सदियाँ एक लम्हे में गुज़र जाती है...
मन यूँ खुशियों से भर गया...
जैसे सारा आलम ही...
खुशनुमा नजारों से भर गया...
जानते हो...
जब सुबह की शबनम में नहा कर...
मेरा वजूद मेरे सामने आया...
तो सूरज ने उसे पहला सलाम किया...
और उसकी शोख़ चंचल किरणों ने...
मेरे गीले बालों को जिस लम्हा छुआ...
वो बेसाख्ता सा हँस दिया...
और उसकी इस हंसी ने...
मेरी मुस्कान को सात रंगों से भर दिया...
और आज मेरी बेरंग जिंदगी में...
खुशियों का इन्द्रधनुष लहरा गया...
अर्चना...
Wednesday, August 24, 2011
संघर्ष और अह्सास...
संघर्ष के चिथडो में लिपटे हुये अह्सास...
एक दिन जब कामयाबी का रेशम पहनते हैं...
उस दिन एक नये शाहकार का जन्म होता हैं...
फिर कोई फर्क नही पडता...
कि उसकी उम्र सरक कर...
ज़िन्दगी की शाम की ओर जाने को हैं...
क्योंकि कामयाबी की उम्र छोटी ही सही...
लेकिन वो अहसास को जवानी दे ही जाती हैं...
अर्चना॥
Thursday, May 26, 2011
कुछ अजनबी दोस्त....
आज जब मुझे पहचानने में शर्मिन्दगी मह्सूस की....
तो मैंने उन्हें और कामयाबी की दुआ दे कर...
अजनबी लोगों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया...
सच कहूँ तो एक पल के लिये दुख तो बहुत हुआ...
लेकिन बाद मे एक सूकून हासिल हुआ...
ऐसा लगा कि मैं कुछ एकतरफा रिश्तों से आज़ाद हो चुकी हूँ...
जिन्हे निभाने में मैने तो अपना बहुत कुछ लगा दिया लेकिन...
उन्होनें मुझे मेरी इस कोशिश को सिरे से नक़ार दिया...
खैर ज़िन्दगी ने आखिर एक और सबक मुझे सिखा ही दिया...
और मुझे बता ही दिया कि वक़्त के साथ सब कुछ बदल जाता है...
कुछ दोस्त अजनबी बन जाते है...
कुछ अजनबी दोस्त बन जाते है...
अर्चना.......
Wednesday, April 13, 2011
हाँ मुझमे अहसास अभी बाकी हैं
धरती की तरह सहनशील हूं मैं...
लेकिन पत्थर नही हूं...
हाँ मुझमें अह्सास अभी बाकी हैं...
कई तूफां आये और चले गये...
लेकिन ज़िन्दगी थमी नही है...
हाँ इसकी रफ्तार अभी बाकी हैं...
हाँ मुझमें अह्सास अभी बाकी हैं...
मुझे सताने वालों ने बदले है पैंतरे कई...
लेकिन मैं अब तक हारी नही हूँ...
हाँ मुझमे जीत का जज़्बा बाकी हैं...
हाँ मुझमे अह्सास अभी बाकी हैं
अर्चना
Friday, January 14, 2011
कशमकश
जहाँ पर मैं खड़ी हूँ...
क्या वो सही मकाम है...
क्या एक क़दम आगे बढ़ाऊँ...
या दो क़दम पीछे हट जाऊ...
समझ नहीं पाती हूँ...
जब भी सोचती हूँ...
क्या अब तक जो किया...
वो सही किया...
या जो आगे करना चाहती हूँ...
वो सही होगा...
या सब कुछ यही छोड़कर...
बहने दूं जिंदगी की धारा को...
फिर देखूं तो सही...
कहाँ ले जाती है ये मुझे...
या फिर रुख मोड़ दूँ उस धारा का...
जो मुझे मुझ तक पहुँचने नहीं दे रही लेकिन...
दावा करती है की एक दिन मकाम पर ज़रूर ले जाएगी....
हालाँकि आज कहने को....
मकान, दीवारें, छत और दरवाजे...
कुछ भी नहीं है मेरे पास....
है तो बस तकदीर की कुछ बाकि बची उम्मीदें...
कुछ नन्हे से हौसले...
हाँ कुछ यारों के धोखे भी है ...
और कुछ दर्द सहे-अनसहे से...
कुछ संबंधों की दरारें भी है...
जिन्हें भरने की कोशिश में...
जहाँ भी पहुँचती हूँ...
वहाँ मेरे अलावा बहुत कुछ होता है लेकिन...
मुझे मुझ तक पहुँचने के लिए...
शायद कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा...
समझ नहीं आ रहा
एक क़दम आगे बढ़ाऊँ...
या दो क़दम पीछे हट जाऊ...
अर्चना...