Tuesday, January 26, 2010

अजनबी से मोड़ हैं यहाँ...बेगानी सी है रहगुज़र...चले जा रहे हम बेसाख्ता से...ले के अपनी ख्वाहिशों का लश्कर...जो भी हो लेकिन इस सफ़र का है अपना मज़ा यारों...इस में कुछ दूरियों से हुई है नजदीकियां... तो कुछ नजदीकिया बन गई हैं दूरिया...कुछ रूठ गई है परछाइयां...और कुछ टूटे है मेरे ख़्वाबों के मंज़र...चले जा रहे हम बेसाख्ता से...ले के अपनी ख्वाहिशों का लश्कर...इस सफ़र में थोड़ी सी रौशनी भी हैं...थोडा सा अँधियारा भी...थोड़ी सी मुफलिसी हैं...तो थोडा सा मनचाहा भी...थोड़ी सी नींदे है इस में...थोडा सा हैं रतजगा...और थोड़ी सी है खट्टी-मीठी यादों की सहर...चले जा रहे हम बेसाख्ता से...ले के अपनी ख्वाहिशों का लश्कर...इस सफ़र में थोडा गम है...और थोड़ी सी है खुशियाँ भी...थोड़ी सी मेहरबानियाँ भी हैं...थोडा सा प्यार भी है...और थोडा सा है बेवफाई का भी कहर ...चले जा रहे हम बेसाख्ता से...ले के अपनी ख्वाहिशों का लश्कर... अर्चना...

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