Friday, March 12, 2010

ज़िन्दगी में खुदा के बाद तुम हो... तुम हर जगह...हर पल में हो...तुम मेरी जिंदगी का हासिल हो...मेरी ज़ात में शामिल हो...मेरी हसरत...मेरी चाहत...मेरी तमन्ना हो...तुम मेरे अरमान...मेरे अहसास...मेरे जज़्बात हो...हाँ तुम मेरा रूप...मेरा रंग...मेरा दर्पण हो...तुम ही मेरा जीवन...मेरी धड़कन...मेरी रूह हो...और तुम ही मेरा वो साहिल हो...जहाँ आकर मेरी कश्ती अपना मुकाम पाती है...हाँ तुम ही मेरी ज़मी...मेरा फलक...मेरी धूप...मेरी छाँव...मेरा रास्ता...मेरी मंजिल हो... सच तुम से मैं ही तो मैं पूर्णता को पाती हूँ...हाँ तुम ही मेरी श्वास हो...मेरा आभास हो...मेरे शब्द हो...मेरी अभिव्यक्ति हो...और मेरी रग-रग में समाहित हो...हाँ तुम ही मेरी पहचान हो मेरी अधूरी रचनाओं....बस तुम थोडा सा इंतज़ार और कर लो ...क्यूँकी ये जो मेरी बिखरी सी जिंदगी है ना...बस इसे ज़रा समेट लूँ...फिर भले ख्वाब में ही सही...तुम्हे इत्मीनान से तुम्हे पूरा करुँगी...हाँ ये वादा है मेरा...अर्चना...

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