Wednesday, March 17, 2010

जानती हूँ की यह जीवन एक ऐसा आकाश है..जहाँ सारे रिश्ते-नाते चमकते हुए सितारे है...जी करता है... उन सितारों को अपनी धानी चुनर पर टांक लूँ... सजा लूँ मोतियों की तरह... माला बनाकर देह पर...गुंध लूँ जूही के फूलों की तरह...और सजा लूँ अपने बालों पर...बना लूँ इन्हें अपनी जिंदगी का सिंगार...लेकिन फिर ठहर जाती हूँ...सहम जाती हूँ...क्यूंकि जानती हूँ की ये सितारे कभी-कभी टूट भी जाते है...और इनकी टूटन से मन का चाँद भी ढल कर कहीं दूर चला जाता है...और फिर जिंदगी इन्ही चंद सितारों के साये में...खुले आसमान के नीचे...और रात की ठंडक में... एक भरपूर नींद को तरसती है...
अर्चना...

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