Tuesday, March 23, 2010

ना जाने क्यूँ...?

ना जाने क्यूँ ...
मेरी उनींदी सी बोझिल आँखों में...
तेरे सपनों के रेशमी धागे...
उलझते जाते हैं...
और धीरे-धीरे...
मैं पाती हूँ अपने आपको...
तेरे उस प्यार के जाल में....
जो तूने अनजाने ही बुन दिया था...
उस वक़्त...
जब जानती नहीं थी की प्यार क्या है...?
और अब जब जान गई हूँ...
तो ये रेशमी जाल सुहाना सा लगता है...
ना जाने क्यूँ...?

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