जीवन का क्या है...
जीवन तो यूँ भी चलता रहेगा...
फिर चाहे मैं तुम्हारे जीवन में रहू या ना रहूँ...
क्या फर्क पड़ता है...
हाँ जानती हूँ एक दिन मैं नहीं रहूंगी...
तब भी सब कुछ वैसा ही होगा....
जैसा अब है...
वैसे ही उगेगा सूरज...
वैसे ही निकलेगा चाँद...
वैसे ही बारिश की बूँदें भिगोएँगी...
तुम्हारे तन-मन को...
और वैसे ही पेड़ों के झुरमुट में...
अचानक खिल उठेंगे कई जूही के फूल...
और गोधूलि में टिमटिमाएगी दिए की एक लौ...
और हाँ तारे भी वैसे ही गुनगुनाएंगे विरह के गीत...
जैसे आज मैं गुनगुनाती हूँ...
लोग काम से घर लौटेंगे...
हाँ तुम भी लौटोगे...
लेकिन मैं नहीं मिलूंगी तुम्हे...
और ना तुम्हारी पलकों पर मेरे होंठों की छुअन होगी...
और हाँ नहीं होंगी इंतज़ार की खुमारी से भरी मेरी आँखें भी लेकिन...
एक स्मृति बची रह जाएगी मेरी...
और वही तुम्हे बताएगी की...
मैंने किस शिद्दत से तुम्हारा इंतज़ार किया है...
वो इंतज़ार जिसे तुमने महज़ एक इंतज़ार माना...
और मैंने उस में अपनी सारी उम्र तमाम कर दी...
अर्चना...
सम्वेदनशील रचना.........."
ReplyDelete.nice
ReplyDeletewaah waah kya baat hai.....
ReplyDeleteaapki soch kabil-e-taarif hai...
aapki agli rachnaon ka intzaar rahega...
main bhi kavita likhna chahta hoon...
aapke margdarshan ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/
bahut bahut shukriyaa mitron...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है ... पर एक बात कहना चाहूँगा कि ... भले ही किसीके जाने के बाद बाकी सबकुछ पहले जैसा ही चलता रहता है ... पर कहीं कोई खालीपन रह जाता है ... सबकुछ ... पहले जैसा नहीं होता है !
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