Tuesday, March 30, 2010
इंतज़ार
जीवन का क्या है...
जीवन तो यूँ भी चलता रहेगा...
फिर चाहे मैं तुम्हारे जीवन में रहू या ना रहूँ...
क्या फर्क पड़ता है...
हाँ जानती हूँ एक दिन मैं नहीं रहूंगी...
तब भी सब कुछ वैसा ही होगा....
जैसा अब है...
वैसे ही उगेगा सूरज...
वैसे ही निकलेगा चाँद...
वैसे ही बारिश की बूँदें भिगोएँगी...
तुम्हारे तन-मन को...
और वैसे ही पेड़ों के झुरमुट में...
अचानक खिल उठेंगे कई जूही के फूल...
और गोधूलि में टिमटिमाएगी दिए की एक लौ...
और हाँ तारे भी वैसे ही गुनगुनाएंगे विरह के गीत...
जैसे आज मैं गुनगुनाती हूँ...
लोग काम से घर लौटेंगे...
हाँ तुम भी लौटोगे...
लेकिन मैं नहीं मिलूंगी तुम्हे...
और ना तुम्हारी पलकों पर मेरे होंठों की छुअन होगी...
और हाँ नहीं होंगी इंतज़ार की खुमारी से भरी मेरी आँखें भी लेकिन...
एक स्मृति बची रह जाएगी मेरी...
और वही तुम्हे बताएगी की...
मैंने किस शिद्दत से तुम्हारा इंतज़ार किया है...
वो इंतज़ार जिसे तुमने महज़ एक इंतज़ार माना...
और मैंने उस में अपनी सारी उम्र तमाम कर दी...
अर्चना...
Tuesday, March 23, 2010
ना जाने क्यूँ...?
मेरी उनींदी सी बोझिल आँखों में...
तेरे सपनों के रेशमी धागे...
उलझते जाते हैं...
और धीरे-धीरे...
मैं पाती हूँ अपने आपको...
तेरे उस प्यार के जाल में....
जो तूने अनजाने ही बुन दिया था...
उस वक़्त...
जब जानती नहीं थी की प्यार क्या है...?
और अब जब जान गई हूँ...
तो ये रेशमी जाल सुहाना सा लगता है...
ना जाने क्यूँ...?
Sunday, March 21, 2010
टूटे रिश्तों की आवाज़
ये सारी आवाजों को अकेले ताउम्र सुनता रहता है...अर्चना...
Wednesday, March 17, 2010
अर्चना...
Sunday, March 14, 2010
एक पुरानी हंसी...
Friday, March 12, 2010
मेरा उन्मादी मन...
ये सहज और सरल सा मन मेरा...
ना जाने क्यूं आज बड़ा उन्मादी सा हो रहा है...?
जानते हो ये पगला मुझसे हौले से क्या कह रहा है ...
कह रहा है...
सुन बहुत हुआ जीवन बलिदान...
अब थोडा सा वक़्त खुद को दे...
और कर ले खुद से खुद की पहचान...
ताकि कल को जब सारे जाने पहचाने चले जाए...
तो तू खुद को अजनबी सा ना पाए...
और सुन...
बहुत हुई दूसरों से सबसे मुहब्बत...
अब थोड़ी सी मुहब्बत खुद से भी कर ले...
ताकि कल को ऐसा ना हो की...
जब सबकी चाहत ख़त्म हो जाये...
तो तू इस लफ्ज़-ए-मोहब्बत को समझ ना पाए...
हाँ मेरी बात को मान...
और जो मैं कह रहा हूँ वही कर...
सुन तुझे इजाज़त है...
जा तू अपने लिए जी ले कुछ लम्हे...
वरना कल ऐसा ना हो की...
रेत की तरह फिसल जाये ये जिंदगी...
और तू अपने अहसास...
अपने जज़्बात का दामन थामे...
उस लम्हे के लिए तरसे...जो वक़्त की शाख पर...
ना जाने कबसे तेरा इंतज़ार कर रहा है...
जा अपना ले उसे...
वरना गर तेरी शक्ल बदल गई...
तो कमबख्त ये आईना...
जो आज तेरी सूरत पर इतराता है...
ये भी तुझसे तेरी पहचान मांगेगा...
अर्चना...