Sunday, March 21, 2010

टूटे रिश्तों की आवाज़

टूटते हैं जब रिश्ते...तो कोई आवाज़ नहीं होती...लेकिन ये सच नहीं है...क्यूंकि आवाज़ तो होती है...ठीक वैसे..जैसे बादल फट कर तूफ़ान गरजता है...जैसे उखड़ जाता कोई दरख़्त...आंधी से हार कर छोड़ देता है अपनी जड़े...जैसे फट जाता है ज्वालामुखी...बरसों अन्दर ही अन्दर सुलगने के बाद...जैसे चीत्कारती है नदी की लहरें...बाढ़ आ जाने के बाद ...जानते हो ये सारी आवाजें मिल कर... उस वक़्त एक हो जाती है...और सिर्फ उसे सुनाई देती है...जो ये रिश्ता तोडना तो नहीं चाहता लेकिन...जिसने तोडा है उसे दर्द ना हो...बस इसलिए ख़ामोशी जता कर...
ये सारी आवाजों को अकेले ताउम्र सुनता रहता है...अर्चना...

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