Friday, March 12, 2010

मेरा उन्मादी मन...

शब्दों के शिखर पर चढ़ कर...
ये सहज और सरल सा मन मेरा...
ना जाने क्यूं आज बड़ा उन्मादी सा हो रहा है...?
जानते हो ये पगला मुझसे हौले से क्या कह रहा है ...
कह रहा है...
सुन बहुत हुआ जीवन बलिदान...
अब थोडा सा वक़्त खुद को दे...
और कर ले खुद से खुद की पहचान...
ताकि कल को जब सारे जाने पहचाने चले जाए...
तो तू खुद को अजनबी सा ना पाए...
और सुन...
बहुत हुई दूसरों से सबसे मुहब्बत...
अब थोड़ी सी मुहब्बत खुद से भी कर ले...
ताकि कल को ऐसा ना हो की...
जब सबकी चाहत ख़त्म हो जाये...
तो तू इस लफ्ज़-ए-मोहब्बत को समझ ना पाए...
हाँ मेरी बात को मान...
और जो मैं कह रहा हूँ वही कर...
सुन तुझे इजाज़त है...
जा तू अपने लिए जी ले कुछ लम्हे...
वरना कल ऐसा ना हो की...
रेत की तरह फिसल जाये ये जिंदगी...
और तू अपने अहसास...
अपने जज़्बात का दामन थामे...
उस लम्हे के लिए तरसे...जो वक़्त की शाख पर...
ना जाने कबसे तेरा इंतज़ार कर रहा है...
जा अपना ले उसे...
वरना गर तेरी शक्ल बदल गई...
तो कमबख्त ये आईना...
जो आज तेरी सूरत पर इतराता है...
ये भी तुझसे तेरी पहचान मांगेगा...
अर्चना...

1 comment:

  1. जो आज तेरी सूरत पर इतराता है...
    ये भी तुझसे तेरी पहचान मांगेगा.nice

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