Monday, February 8, 2010

सुनो एक सच कहूँ तुमसे...अगर बुरा ना मानो तो...मुझसे ये दोहरी जिंदगी नहीं जी जाती...ये लबों पर ख़ुशी का नगमा...और दिल में ग़म का साज़...ये अजब ग़ज़ल है तुम्हारी...ये मुझसे गाई नहीं जाती...हाँ मैंने तुमसे वादा किया है की मैं खुश रहूंगी सदा ...और गाऊँगी खुशियों के तराने...लेकिन सच कहूँ...दे रही हूँ धोखा तुम्हे ये बात मुझसे अब सही नहीं जाती...एक गुज़ारिश हैं तुमसे गर मानो तो..तुम मेरी जिंदगी का फलसफा पढना छोड़ दो अब...क्यूंकि इसके पन्ने बड़े बेरतबीब है...और इसकी इबारत अब पढ़ी नहीं जाती...अर्चना....

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