Tuesday, February 23, 2010
पता नहीं क्यूँ... तुम्हारा इंतज़ार करने का मन होता है... कभी किसी फूलों भरे पेड़ की छाया में... कभी तपती सुलगती धूप के वक्त...तो कभी ठंडी झील के किनारे...तो कभी हलकी सुरमुई शाम के वक्त....सच कहूँ तो उन क्षणों में पंछियों को बताना होता है तुम्हारे बारे में... जब वे पेड़ पर बैठे मुझसे इंतज़ार करने का सबब पूछते हैं...और बेचारे शाम के वक्त भी यही सवाल करते है ...जब वे उड़कर अपने घरों में जाते हैं...हाँ सच तब भी वो यही जानना चाहते हैं मुझसे... की तुमसे मुलाक़ात मेरी हुई कि नहीं... और तब उनकी ये मीठी सी हमदर्दी....तुम्हारा ही बंधाया धीरज सी लगती है...वो धीरज...जो तुम अक्सर मुझे बंधाया करते हो...ये कह कर की तुम्हारा इंतज़ार ना करूँ...लेकिन ना जाने क्यूँ तुम्हारा इंतज़ार करने का मन होता है.... अर्चना...
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बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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