Friday, February 26, 2010

ना जाने क्यूँ खामोशियाँ दे रही है सदा...की आज तू निशब्द हो जा और सुन ले... अपनी जिंदगी के उस अनकहे अहसास को...जो आज किसी को याद करके... तेरी आँखों के ज़रिये बदस्तूर बह रहे है...वो जो तेरी यादों में बसता है लेकिन...तेरी जिंदगी में नहीं...वो जो तेरी आँखों में बसता है लेकिन... तेरे नजारों में नहीं...वो जो तेरे दिल में बसता है लेकिन...तेरी धड़कन में नहीं... वो जो तेरे पास हो कर भी तेरे पास नहीं...वो जो अब तेरे अहसास नहीं...अब तेरे जज़्बात नहीं...अब तेरे लम्हात नहीं...ना ही वो तेरी कायनात है...फिर भी वो कुछ है...जो तुझे शब्दों के साथ भी निशब्द कर देता है...वो गुजरी जिंदगी का एक लम्हा है...जो तुझे भीड़ में भी तनहा कर देता है...तो आज उसी को एक मौन श्रृद्धांजलि दे दे...उसे एक भावभीनी तिलांजलि दे दे...ताकि कल कोई ख़ामोशी तुझे सदा ना दे सके...और तू निशब्द आंसुओं की ज़ुबानी ना बोल सके...क्यूंकि तेरी जिंदगी तेरे शब्द है...और वो गुज़रा लम्हा अब निशब्द है...अर्चना....

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