Tuesday, February 16, 2010

सुनो मेरे आंसूंओं से तुम बिलकुल परेशां मत होना...क्यूंकि इनके बहने की वजह तुम नहीं हो...और ना ही तुम्हारी कोई खता नहीं है...बस वो तो कुछ कांच के ख्वाब थे आँखों में,वही टूट कर चुभ गए है...सुनो मेरी ख़ामोशी से तुम बिलकुल परेशां मत होना...क्यूंकि इसके मौन की वजह तुम नहीं हो...और ना ही तुम्हारी कोई खता है...वो तो कुछ अनकहे शब्द थे...जो मेरे गले में रुंध गए है...सुनो तुम मेरी उदासी से बिलकुल परेशां मत होना...क्यूंकि इसके आने की वजह तुम बिलकुल नहीं हो...और ना ही तुम्हारी कोई खता है...बस वो तो एक अहसास का झरोखा टूटा था...जहाँ इसने चुपके से बसेरा बना लिया है ...और हाँ सुनो तुम मेरी इस निशब्द सी हस्ती से परेशां मत होना...क्यूंकि इसके वजूद की वजह तुम हरगिज़ नहीं हो...और ना ही इस में तुम्हारी कोई खता है...वो तो मेरे माज़ी के उन बीते लम्हों का हिसाब है...जो वक़्त के यहाँ गिरवी पड़े है...हाँ सच तुम मेरे जज़्बात मेरे हालात...मेरे ख्वाबों के बिखरने की वजह नहीं हो...वो तो बस मेरे अरमानो के दामन का एक कोना फटा है...जहाँ से एक-एक करके मेरी जिंदगी के ये अनमोल मोती बिखर गए है...और हाँ ये बिलकुल सच है...की ना तुम कोई वजह हो...और ना ही तुम्हारी कोई खता है...अर्चना...

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