Monday, February 1, 2010

“पलकों ने बनाया था एक शामियाना की जिसमें… आज चंद आंसूओं ने चुपके से ली थी पनाह…और ये सोच कर उस में बनाया था बसेरा…की वक़्त आने पर बह के वो भी बताएँगे अपना हुनर… लेकिन हम भी कुछ कम हुनरमंद नहीं यारों….आंसू हो या हो गम…या हो कोई दर्द भरी चुभन…हर अहसास को दिल में जज़्ब करने की अदा पाई हैं…अपने हर आंसू पर मुस्कान की मीठी सी परत चढ़ाई हैं …अब चाहे कुछ भी हो ये आंसू ना आज़ाद होंगे …ये इसी तरह पलकों में क़ैद-ओ-आबाद होंगे …इन् पर लगायेंगे हम मुस्कान का ऐसा पहरा …चाह कर भी ये हमारा साथ ना छोड़ पाएंगे …इन्हें अब वही बसर करना होगा जहाँ मेरे अहसास हैं …मेरे जज़्बात हैं …मेरा दर्द हैं …जो मेरी विरासत हैं …क्यूंकि मैं जानती हूँ की इनके बिना ख़ुशी की कोई कदर नहीं होती…हाँ ये अनमोल खजाना हैं …मेरी पलकों के बेमिसाल मोती…” अर्चना...

2 comments:

  1. पलकों ने बनाया था एक शामियाना की जिसमें… आज चंद आंसूओं ने चुपके से ली थी पनाह…और ये सोच कर उस में बनाया था बसेरा
    LAJWAAB PANKTIYA..

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