Wednesday, February 24, 2010
डाल-डाल टेसू खिले है...आया फागुन मधुमास...प्रकृति भी जैसे कर रही...पिया मिलन की आस...तन-मन हर्षित...गाल गुलाबी...और निखरा है रंग...ऐसा जैसे पिघला सोना...और धूप का अंग...लगता है सुहागे सा होगा...किसी का प्रणय प्रसंग...और किसी पर चढ़ जाएगी... प्रीत की मीठी भंग...फिर होगा अबीर गुलाल से...किसी का आँचल सतरंग...फिर डोलेगा मन मतवाला...लेकर नई उमंग...फिर हर गली मोहल्ले में... खेला जायेगा रासरंग...और फिर सतरंगी बोछारों से... पुलकित होगा नेह अतरंग...और फिर ये देख जब मुस्काएगा...वो चंचल सा अभिसार...हाँ तब मेरे स्मित अधरों पर होगी प्रीत की बोली...सुन ओ सखी री...आज फागुन के काँधे चढ़ कर आई... मेरी प्यार की पहली होली...अर्चना...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुन ओ सखी री...आज फागुन के काँधे चढ़ कर आई... मेरी प्यार की पहली होली..
ReplyDeletekya khoob likhtee hain aap!
bahut-bahut skhukriyaa kshama...
ReplyDelete