Saturday, February 13, 2010
हाँ ये सच है गर तुम मानो तो...बहुत ज्यादा की हसरत नहीं ही मुझे...बस सुबह की थोड़ी सी गुनगुनी धूप हो... एक गरम चाय की प्याली हो ...और एक मनपसंद किताब गर मुझे मिल जाये...बस फिर तो मेरा दिल भी रूमानी हो जाये....हाँ बहुत ज्यादा की हसरत नहीं है मुझे...दोपहर की हल्की-हल्की सी गर्मी हो...आँगन में नीम के पेड़ की छाँव हो...और जिसके साये में अलसाया सा मेरा मन गर मिल जाये...बस तो फिर मेरा दिल भी रूमानी हो जाये...हाँ बहुत ज्यादा की हसरत नहीं है मुझे...सुरमुई शाम की ठंडी बयार हो...दिन भर के फसानो और अफसानो का भण्डार हो...और उस पर तुम्हारे आने की खबर गर मिल जाये....बस तो फिर मेरा दिल भी रूमानी हो जाये...हाँ सच बहुत ज्यादा की हसरत नहीं है मुझे...अर्चना...
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सुरमुई शाम की ठंडी बयार हो...दिन भर के फसानो और अफसानो का भण्डार हो...और उस पर तुम्हारे आने की खबर गर मिल जाये....बस तो फिर मेरा दिल भी रूमानी हो जाये...हाँ सच बहुत ज्यादा की हसरत नहीं है मुझे...अर्चना...
ReplyDeletekya baat hai!
वाह जी बहुत खूब क्या दिलचस्प शैली है , बहुत सुंदर
ReplyDeleteअजय कुमार झा
goya itnee saaree hasraten hain
ReplyDeletejinko paane k liye aap taraste hain:-)
jitni acchhi aap dikhti hain
us se kahin zaada achha aap likhti hain:-)
sanjay verma ( face book account)
sanv12000@yahoo.co.in
shukriya Shama...Ajay aur Sanjay...
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