Wednesday, February 10, 2010

माँ नर्मदा को मेरा नमन....

जिंदगी की आपाधापी में एक जुग बीत गया...और भटकी हुई लहर बन कर जब मैं तेरे पवित्र चरणों को छूने आई.... तो तूने माँ बन कर अपनी बाँहें फैला दीं...और दे दिया मुझे मुक्ति का वचन तूने...जबकि मैंने कभी तुझे कुछ ना दिया...बस जब भी दिया...तूने ही दिया...तेरे हरे भरे किनारों ने...तेरे निर्मल जल ने...हमारी क्षुधा को शांत किया...तूने हमे पावन किया...तू हमारी जन्मदायिनी है...हमारी मुक्तिदायिनी है....और हाँ....तेरे किनारे बसे एक घर में मेरी जड़ें है...वो मेरे पुरखें है...मेरी पहचान है वो...आज फिर उन्ही को याद कर के ...रंग बिरंगे फूलों और सुनहरी दिए की जोत जला...और आस्था- भक्ति का थाल लिए तेरे क़दमों में फिर आ बैठी हूँ.... और अब तुझसे यही चाहती हूँ...की जब तक ये सृष्टि है...तेरे आँचल में जिंदगियां यूँ ही पलती रहे...मेरी प्यारी नर्मदा मैया...तू यूँ ही बहती रहे....अर्चना....

1 comment:

  1. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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