Tuesday, February 23, 2010
काश ऐसा खुशियों का ऐसा कोई मंज़र आये...ग़म मेरी बस्तियों से दूर निकल जाये...मैं बन जाऊ एक नन्हा सा बच्चा...और मां की गोद फ़िर से मुझे मिल जाये...मैं उसके आँचल से लिपट कर फिर खिलखिलाऊ...उसकी लोरियों की धुन सुन कर चैन से थोडा सो जाऊ...वही मेरा धर्म हैं ये जान कर सजदे में अपना सर झुकाउ...हाँ कुछ पल के लिए ही सही अपने बचपन में फ़िर से लौट जाऊ...और देखू की जब मेरी शरारत से माँ रूठ कर कितनी सुन्दर लगती है...तो थोडा सा उसे गुस्सा दिलाउ...फिर दे के अपने नाज़ुक मासूम अधरों का चुम्बन...उसके चेहरे पर खुशियों की सौगात लाऊ ...उसके उसके हाथो से मीठी सी दुध रोटी खाऊ...और पी कर पानी उसके हाथों से... बरसो की अपनी प्यास बुझाऊ ...और फिर आखिर में उसके आँचल से...अपने मुंह को पोंछ कर वो चमक ले आऊं...जो इस दुनिया की आपाधापी में कहीं खो सी गई है...हाँ ये सच है की माँ के बिना जिंदगी के चेहरे की चमक खो सी गई है... अर्चना...
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बहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeleteshukriyaa Sanjay...
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