Thursday, February 4, 2010
आकांक्षाओं का ये मुक्त गगन...और इस में उड़ता मेरी आस का ये नन्हा सा पंछी...यूँ उडा जा रहा है...जैसे इस गगन को सिर्फ उसी के लिए बनाया गया है...वो देखो कैसे अपने परों को नापता...तौलता थोडा सहमता...थोडा किलकता...थोडा उन्मादी...थोडा फरियादी...थोडा सा खुशमिजाज़ भी है...तो थोडा सा ग़मगीन भी...उसे देख कर दिल को बड़ा सकूं मिल रहा है...अरे वो देखो...अभी-अभी वो थोडा सा बहका था...और देखो अभी वो संभल भी गया...और अब देखो...वो थक कर धीरे से... मेरे दिल की खिड़की पर आकर बैठ गया है...और जैसे ही मैंने उसे छूना चाहा...वो फुर्र से उड़ गया...और में उसकी परवाज़ को खडी एकटक देखती रही...उस परवाज़ को...जो मेरी ही देन है लेकिन...अब उस पर मेरा कोई हक़ नहीं...क्यूंकि अब आज़ाद है वो मेरी आस का नन्हा सा पंछी...अर्चना...
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बढ़िया है कविता.
ReplyDeleteसुन्दर रचना शुभकामनायें
ReplyDeleteshukriya Kishor..Sanjay...
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