Thursday, February 18, 2010
बीते लम्हों का हिसाब
कल मेज़ की दराज़ से कुछ पन्ने मिले...जो मैंने फाड़ दिए थे अपनी उस डायरी से...जिस में तुम्हारे साथ बिताये लम्हों का हिसाब लिखा था....मैंने देखा की उन पन्नों में अब भी सांस लेती हैं...मेरी कुछ अधबनी कविताएं....कई अधूरे से शब्द...कुछ अनमनी सी उपमाएं...कुछ नन्ही सी स्मृतियां...कुछ टूटे से अरमान...कुछ ख्वाब अधूरे से...कुछ हसरतें बिलखती सी...दो-चार ख़ुशी के लम्हे भी थे ...और हाँ कुछ जज़्बात मिले जो अपनी अंतिम सांस की कगार पर थे...और मिले कुछ जूही के सूखे फूल...जो उन पन्नो से लिपटे हुए थे...ठीक ऐसे...जैसे तुम्हारी कुछ भूली-बिसरी सी यादें...जो जिंदगी की मेज़ के उस दराज़ में महफूज़ है...जिसे मैं कभी खोलना नहीं चाहती...लेकिन आज जब ये डायरी के पन्ने मिल गए...तो सोचती हूँ की उस दराज़ को खोल कर उन यादों को इन पन्नो के साथ विसर्जित कर दूँ...ताकि कल कोई और दराज़ जब खुले...तो कोई ऐसा पन्ना ना मिले...जिस पर उन लम्हों का हिसाब हो...जो लम्हे सदियाँ बीत जाने पर भी नहीं बीते...अर्चना...
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Bahut sundar likhti hain aap!
ReplyDeletegood
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