Tuesday, February 2, 2010
उम्मीद तुम्हारे आने की तब क्यूँ आती हैं...जब कभी मैं सारी दुनिया से नाउम्मीद होती हूँ... जानती हूँ दिन अनगिनत बीते हैं तुम्हारे आने की उम्मीद में...और कई अधसोई उनींदी रातों के हिसाब भी हैं मेरे पास लेकिन...फिर भी उम्मीद का सपना मेरी आँखों में यूँ पल रहा है...जैसे खुली आँखों से मैंने तुम्हारे आ जाने का भ्रम पाला हो...और हकीकत की भोर होते ही वो सपने बन पंख लगा कर उड़ गए ऐसे ....की जैसे कई बरसों से मन का पंछी किसी पिंजरे में क़ैद था...नहीं नहीं मेरी उम्मीद इतनी कमज़ोर नहीं की वो मेरा साथ छोड़ दे...वो तो ऐसी है जैसे रातों में जलती आँखों में गहरी नींद हो...जैसे थकन और उदासी से टूटती देह में थिरकन हो...जैसे सन्नाटे में संगीत सी घुमड़ती कोई ग़ज़ल हो...जैसे मरुस्थल में जल की धारा मेह बन बरसती हो....जैसे समंदर की सीप में अनमोल कोई मोती हो...जैसे कैक्टस के बाग़ में गुलाब खिले हो...जैसे दर्द में मिला सकून हो...जैसे परदेस में मिला कोई अपना हो...और वो अपना कोई और नहीं तुम हो...तुम जो मेरी उम्मीद हो...मेरी विश्वास हो...मेरी जिंदगी हो...मेरी श्वास हो...तो चलो आज मैं तुम्ही से पूछती हूँ...क्या मेरी उम्मीद जो मेरी मोहब्बत है कभी कभी पूरी भी होगी ...या वो कमबख्त तुम्हारी जिद जो मेरी सौत है वो जीत जाएगी... अर्चना...
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good keep it up
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