Sunday, February 28, 2010

एक वक़्त था जब तुम कहते थे की मेरी नज़र मेरे दिल का आईना है...ये वो कह जाती हैं जो मेरी ज़बा नहीं कह पाती...हाँ याद है मुझे की... इसी की गिरफ्त में आ कर... तुमने मुझसे इजहारे मोहब्बत किया था...हाँ इसी से तुम्हे बड़ी उल्फत थी...हाँ यही तो तुम्हारी जिंदगी थी...और इन्ही में तुमने मेरे दर्द की तस्वीर देखी थी...मेरे अहसास...मेरे जज़्बात को महसूस किया था...लेकिन कुछ दिनों से ये तुम मुझसे नज़रें क्यूँ चुरा रहे हो...क्या ये मेरी नज़र का भ्रम है...या फिर तुम्हारी ही नज़रें बदल गई है...सुनो ये नज़रों का खेल अब बंद भी कर दो...और कह भी दो ना...की अब तुम्हारे लिए मेरी मुहब्बत...मेरी चाहत... मेरी हसरत...मेरी उमंग...मेरी धड़कन...मेरे अरमान...मेरे ख़्वाबों की ताबीर...की अब कोई गरज नहीं है...हाँ कह दो सच मैं बुरा नहीं मानूंगी...बल्कि मैं तो अपनी ही नज़रों को ऐसे झुका लूंगी...जैसे ये कभी तुम्हारी तरफ उठी ही ना हो...क्यूंकि ये मेरी नज़र है...वो नज़र जो मेरे दिल की जुबा है...मेरे दिल का आईना है...और तुम ही तो कहते हो ना... की आईना कभी झूठ नहीं बोलता...अर्चना...

1 comment:

  1. होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

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